खूबकला के चमत्कारी औषधीय गुण और स्वास्थ्य लाभ

*खूब कला क्या है ?*

*खूबकला एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसका विभिन्न रोगों से मुक्ति पाने में विशेष योगदान है। देखने में यह सरसों के बीज के समान होती है परन्तु आकर में सरसों के बीज सेका फीबारीक होती है। खूबकला को अनेक नामों से जाना जाता है जैसे- खाकसी, खाकसीर, जंगली सरसों, बनारसी राई इत्यादि। इस का एक अंग्रेजी नाम लन्दन रॉकेट भी है।सरसो जैसे ही दिखने वाले यह बीज स्वाद में कुछ तीखा पन लिए होते हैं। इन की तासीर गर्म  होती है।*

*खूबकला यूं तो एक यूनानी चिकित्सा पद्धिति का नाम है परंतु यह एक औषधि भी है। आयुर्वेद के क्षेत्र में खूबकला या खाकसी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। चेचक, खसरा, मोतीझरा, ज्वर, खांसी, बवासीर, ज़ुकाम इत्यादि रोगों में खूबकलाका प्रयोग विशेष रूप से किया जाता रहा है।भारत वर्ष में आज भी इसआयुर्वेदिक औषधि का उपयोग घरेलू उपचार के रूप में किया जाता है। और परिणामस्वरूप इसको बहुत कारगर पाया गया है। कितने ही रोगी इसके सेवन से लाभान्वित होते रहे हैं।*

*खूबकला के चमत्कारी फायदे*

*खूबकला टॉय फाइड उपचार में: मोतीझरा, मियादी बुखार या टॉयफाइड जैसे रोगों में इसका विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। 4 -5 मुनक़्क़ा के बीज निकाल कर उस पर खूबकला अच्छे सेल पेट लें फिर इसको गर्म तवे पर सेंक कर रोगी को रोज़ खिलाने से आराम मिलता है। यदि लंबे समय से ज्वर न जा रहा हो या बार-बार लौट कर आ रहा हो तो उसके लिये भी ये उपाय लाभकारी है। इसके अतिरिक्त पानी अथवा दूध में पका कर पिलाने से भी लाभ मिलता है।*

*चेचक के इलाज में: चेचक या खसरा रोगों का इलाज भी खूब कला से किया जाता है।खूब कला के बीज को पानी में देर तक पकाकर काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाया जाता है।और इसके बीज को रोगी के बिस्तर पर बिखेर देने से इस रोग के रोगाणुओ को फैलने से बचाया जा सकता है और रोगी को आराम भी मिलता है।*

*दमा के इलाज में: दमा, खांसी अथवा सामान्य बुखार में भी खूबकला या खाकसी से लाभ मिलता है।यह कफकी समस्या को दूर कर रोगी को आराम पहुंचाता है। 2-5 ग्राम मात्रा में खूबकला लेकर मुनक़्क़ा, मकोह, सौंफऔर उन्नाब के साथ पानी में मिलाकर देर तक पकाकर पीने से ज़ुकाम व कफ में आराम मिलता है।*

*कफ का इलाज खूब कला से : यह कफ के कारण उत्पन्न होने वाली सभी समस्याओं को दूर करता है।*

*खूबकला कमजोरी दूर करने के लिए: खूबकला की 2 ग्राम मात्रा को दूध में पकाकर पीने से कमज़ोरी दूर होती है।*

*खूबकला बवासीर के इलाज में: बवासीर के उपचार में भी इसका विशेष योगदान है। यदि खूबकला का पाउडर 5 ग्राम मात्रा में दिन में दो बार तीन सप्ताह तक पानी या दूध के साथ सेवन करें तो इस रोग की पीड़ा से मुक्ति मिलती है।*

*हैज़ा के इलाज में: खूबकला का प्रयोग पेट संबंधी रोगों के इलाज के लिए भी किया जाता है।यदि किसी व्यक्ति को हैज़ा हो जाये तो गुलाब जल के साथ इस का सेवन करने से लाभ मिलता है।और दस्त की स्थिति में कासनी की पत्तियों के साथ इसके बीज का सेवन किया जाता है।*

*बच्चों का शारीरिक विकास में: सूखा अथवा कुपोषण जैसे रोगों में इसका उपयोग :- कई बार शिशु सूखा या सूखिया जैसे रोगों का शिकार हो जाते इसको कुपोषण भी कहा जाता है।ऐसे में बच्चों का शारीरिक विकास रुक जाता है और शरीर अत्यंत दुर्बल व सूखने लगता है। इस रोग से मुक्ति पाने के लिए खूबकला एक अच्छी औषधि है। इसके लिये 50 ग्राम खूबकला को आधा लिटर बकरी के दूध में खूब अच्छी तरह पकालें फिर इसको किसी बारीक छलनी या कपड़े की मदद से छान लें खूबकला के बीज को छान कर छाया में सुखा लें। जब बीज अच्छी तरह सूख जाएँ फिर से यही प्रक्रिया दो हराइये।इसी प्रकार जब तीसरी बार में बीज अच्छी तरह सूख जाएँ तो इनको बारीक पीसकर रख लीजिये। और प्रतिदिन 2 ग्राम पाउडर दूध में मिलाकर बच्चे को पिलाने से सूखा रोग से छुट कारा मिल जाता है और शिशु फिर  से हष्ट-पुष्ट होने लगता है।*

*सूजन कम करने में: खूबकला का प्रयोग लेप के रूप में भी किया जाता है।यदि शरीर के किसी हिस्से पर सूजन या दर्द हो तो इसके बीज का लेप लगाया जाता है।*

*खूबकला के पोषण तत्व: खूबकला के न केवल बीज अपितु इस औषधि के पत्तों का भी विभिन्न रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। इसके पत्तों में प्रोटीन, विभिन्न विटामिन, खनिज (जैसे- केल्शियमवफॉस्फोरसआदि), फाइबर व कार्बोहाइड्रेट भी पाए जाते हैं। इसके पत्तों का प्रयोग सलाद के रूप में भी किया जाता है।*

*खूबकला की सावधानी: खूबकलाकी तासीर गर्म होने के कारण गर्भवती महिलाओं को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिये*

*निरोगी रहने हेतु महामन्त्र*

*मन्त्र 1 :-*

*• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें*

*• ‎रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) वरिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें*

*• ‎विकारों को पन पने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)*

*• ‎वेगो को न रोकें ( मल, मुत्र, प्यास, जंभाई, हंसी, अश्रु, वीर्य, अपानवायु, भूख, छींक, डकार, वमन, नींद,)*

*• ‎एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)*

*• ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें*

*• ‎भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें*

*मन्त्र 2 :-*

*• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)*

*• ‎भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)*

*• ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुन गुने पानी का सेवन कर शौचक्रिया को जाये*

*• ‎ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें*

*• ‎पानी हमेशा बैठकर घुट घुट कर पिये*

*• ‎बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें*

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